वाराणसी: अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क), वाराणसी में आज डी.एस.आर. (धान की सीधी बुवाई) कॉन्क्लेव 2025 का शुभारंभ हुआ। इस तीन दिवसीय आयोजन में वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं, निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों और प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया, ताकि जलवायु-स्मार्ट चावल उत्पादन प्रणालियों में नवाचार और अपनाने की गति बढ़ाई जा सके।
कॉन्क्लेव की शुरुआत सुबह के सत्र से हुई जिसका विषय था "धान की सीधी बुवाई: प्रगति, दृष्टिकोण और नीति मार्ग"| इस सत्र की अध्यक्षता इरी की महानिदेशक डॉ. इवोन पिंटो ने किया, एवं श्री डी.पी. विक्रमसिंघे, सचिव, कृषि, पशुपालन, भूमि और सिंचाई मंत्रालय, श्रीलंका सह-अध्यक्ष रहे। इस सत्र में कई प्रमुख प्रतिनिधि शामिल थे, जिनमें डॉ. विरेंद्र कुमार, अनुसंधान निदेशक,इरी; डॉ. ए. के. नायक, उपनिदेशक जनरल, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद; डॉ. पी.एस. बिर्थल, निदेशक, भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय कृषि नीति और योजना संस्थान; डॉ. रिका जॉय फ्लोर, वैज्ञानिक, इरी; और डॉ. पन्नीरसेल्वम, वैज्ञानिक, इरी; जिन्होंने सत्र के संयोजक के रूप में कार्य किया।
सत्र में उन्होंने धान की सीधी बुवाई (डी.एस.आर.) से जल-बचत, श्रम-कम उपयोग और लाभकारी उत्पादन जैसे फायदों पर चर्चा हुई। प्रस्तुतियों और चर्चाओं में बताया गया कि डी.एस.आर. से पानी की खपत 20–40% तक कम हो सकती है, श्रम की जरूरत 25–30% तक घट सकती है, और मीथेन उत्सर्जन 35–40% तक कम हो सकता है, साथ ही फसल की पैदावार स्थिर रहती है और मुनाफा बढ़ता है। भारत, कंबोडिया, वियतनाम, श्रीलंका और अन्य एशियाई देशों के अनुभव से यह स्पष्ट हुआ कि मशीनीकरण, प्रिसिजन एग्रीनॉमी, डी.एस.आर फिट किस्में, पानी का सही प्रबंधन और स्टुअर्डशिप फ्रेमवर्क जैसे समेकित उपाय अपनाने से डी.एस.आर को बड़े पैमाने पर अपनाने में मदद मिल सकती है।
“डॉ. इवोन पिंटो ने अपने संबोधन कहा कि धान की सीधी बुवाई अब सिर्फ भविष्य की बात नहीं है—यह आज की चुनौतियों का एक ठोस और सिद्ध समाधान है”। “ यह साबित हो चुका है कि डी.एस.आर पानी और श्रम दोनों की बचत करता है और मीथेन उत्सर्जन को लगभग आधा कम कर सकता है। अब हमें मिलकर प्रयास करने की जरूरत है—विज्ञान, नीतियां और व्यवसायिक मॉडल को जोड़कर इसे जिम्मेदारी और सभी के लिए फायदेमंद तरीके से अपनाना होगा।”
उद्घाटन सत्र में शामिल प्रमुख प्रतिनिधियों में डॉ. कोंग किया, जनरल डायरेक्टरेट ऑफ़ एग्रीकल्चर (जीडीए), कंबोडिया; श्री अजीत कुमार साहू, संयुक्त सचिव (बीज), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार; श्री रवींद्र, प्रधान सचिव, कृषि और कृषि शिक्षा, उत्तर प्रदेश; डॉ. अरबिंद कुमार पाधी, प्रधान सचिव, कृषि एवं किसान सशक्तिकरण विभाग, ओडिशा; डॉ. पी.एस. बिर्थल, निदेशक,भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र एवं नीति अनुसंधान संस्थान; डॉ. बी.आर. काम्बोज, कुलपति, चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा; डॉ. संजय सिंह, महानिदेशक,उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद ; डॉ. संगीता मेंदिरत्ता, बायर क्रॉप साइंस; और श्री अजय राणा, अध्यक्ष, फेडरेशन ऑफ़ सीड इंडस्ट्री ऑफ़ इंडिया शामिल थे।
इस सत्र में डॉ. कोंग किआ, कंबोडिया ने 1,600 कम्यूनों में चल रहे डी.एस.आर अनुसंधान और सरकारी पहल पर प्रकाश डाला। श्री अजीत कुमार साहू, भारत सरकार ने बीज प्रणाली को मजबूत करने, सीड साथी जैसे ट्रेसबिलिटी प्लेटफॉर्म और मूल्य श्रृंखला से जुड़े उपायों की जरूरत पर जोर दिया। राज्य स्तर पर, श्री रवींदर, उत्तर प्रदेश में डी.एस.आर अपनाने की प्रगति की जानकारी दी। डॉ. अरबिंद कुमार पाधी, ओडिशा ने डेटा-आधारित, जलवायु-स्मार्ट कृषि, लैंगिक और सामाजिक समावेशन, डिजिटल निर्णय समर्थन प्रणाली, मशीनरी और छोटे किसानों और महिलाओं के लिए डी.एस.आर के पैमाने पर विस्तार पर जोर दिया।
डॉ. इवोन पिंटो ने इरी की दक्षिण एशिया में मजबूत साझेदारियों, 2025–2030 रणनीति और संस्थान की 65वीं वर्षगांठ का उल्लेख करते हुए कहा कि “धान की सीधी बुवाई ऐसा नवाचार है जो चावल आधारित कृषि-खाद्य प्रणालियों में व्यापक परिवर्तन की क्षमता रखता है। इरी के पायलट और भारत में उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब और हरियाणा में हस्तक्षेपों से 20,000 हेक्टेयर से अधिक में लाभ दिखा है, जिससे किसानों की आय और संसाधनों का कुशल उपयोग हुआ है। अब चुनौती पायलट से सतत पैमाने पर विस्तार की है, जिसमें विज्ञान, नीति, साझेदारी और निवेश को जोड़कर नवाचारों को किसानों तक पहुँचाना आवश्यक है।”दिन का समापन डॉ. सुधांशु सिंह, निदेशक, आइसार्क के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिन्होंने सभी प्रतिनिधियों, नीति निर्माताओं एवं साझेदारों का आभार व्यक्त किया और इस बात पर जोर दिया कि डी.एस.आर के बड़े पैमाने पर प्रसार के लिए सहयोग जारी रखना आवश्यक है।
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