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Friday, November 18, 2022

गरीबी लाईलाज बीमारी कोई इससे निजात तो दिलाये

वाराणसी: देश में नेताओं की दिवाली रोज होती है जहॉ लक्जरी जीवन के साथ मौज मस्ती भी खूब होता है वजह नोटों पर आधिपत्य स्थापित. भारत की राजनीति में बदलाव को लेकर आम आदमी की आवाज़ और हितों की झूठी कहानी आज गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ा रही है. आप बड़ी बड़ी रैलीयां , करोड़ों रुपए पार्टी विकास पर खर्चा गरम-गरम चर्चा कर प्रदेश के जिला निवासियों को एक संदेश देना चाहते हैं की सबसे बेहतर हम हैं इसकी होड़ लगी हुई है, वहीं दूसरी तरफ मेरी निगाहें जो दर्द से कराहती आँखें जो आपकी रैली व कार्यालय देखने की बात तो दूर मन में यह कोस रही थी कि काश तुम मेरी भी दर्द को सुन पाते और मेरे अंदर उठ रहे तड़प के साथ अंतरात्मा की आवाज जो गरीबी के हर पल दुखद और जीने के लिए दो रोटी जो आज के महंगाई बेरोजगारी भरी बोझ से जिंदगी जीवनयापन असंभव सा हो गया है वह मुझे सहज रूप से मिल जाता तो शायद मैं और मेरा परिवार तुम्हें अपना रखवाला समझकर अपना सब कुछ मान लेता. (Sound of feelings) प्रतिदिन दिनभर रिक्शा खींचता हूं इसके बाद पूरे परिवार का भरण पोषण के लिए जी तोड़ मेहनत करता हूं किसी तरीके से खाना मुहैया कर पाने में सफल हो पा रहा हूं वह भी भोजन में भी समझौता.


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 कभी दाल गली तो सब्जी नहीं और कभी सब्जी मिली तो दाल नहीं 

क्या आप हमारी आवाज या हम जैसे लोगों की आवाज नहीं सुन सकते सुन लो साहब जितनी पेट्रोल रैलियों में आप धुआं धुआं उडाते हो उतना मुझे मिल गरीब को मिल जाए तो मेरी जिंदगी और मेरे बच्चे जो अशिक्षित हैं बिना शिक्षा के घर पर बैठ शाम आने का इंतजार करते हैं कि पिताजी आएंगे तो आटा और खाने की सामग्री ले आएंगे जिसे हम लोग पकाकर खाएंगे उनकी जिंदगी सफल हो जाये, साहब यदि महंगाई दर इस तरीके से निरंतर अपनी पांव पसारती रही तो हम लोगों की जिंदगी की ईहलिला सिमट कर अंतिम पड़ाव में सांसों को पाने के लिए तड़पती नजर आयेंगी! हम जैसे लोग भारत के कोने कोने में रहते हैं और दो रोटी के लिए खून और पसीना रोज बहाते हैं ! जब कभी आप नियम और कानून बनाते बिगड़ते हो तो सिर्फ आप जानते हैं और आपके लोग जानते हैं लेकिन हम तो यह जानते हैं कि घर में सही से भोजन मिल जाए यही मेरी जिंदगी होगी दर्द इतनी है कि कोई उसकी दवा नहीं बस मजबूरी बस जिंदगी गुजर रही है.

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यह किसी एक गरीब का विषय नहीं बल्कि हम और हमारे जैसे लाखों लोग जो इस तरीके से अपने परिवार का भरण पोषण कर जिंदगी बिता रहे हैं उनका आपको लिए एक संदेश और प्रार्थना है.

कर सको तो करो दया मुझ पर जिससे दो जून की रोटी मिल जाए!

यदि बच्चे पढ़ पाए तो मानो हम सबकी जिंदगी सफल हो जाए!!

कृष्णा पंडित (राष्ट्रिय अध्यक्ष आदर्श पत्रकार संघ) 

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