शुक्रवार की रात 8 बजकर 49 मिनट पर सूर्यदेव के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते ही मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) का शुभारंभ हो गया है. ऐसे में अरुणोदय काल में मकर संक्रांति का महापर्व शनिवार को मनाया जा रहा है. इस पावन त्योहार पर गोरक्षपीठाधीश्वर और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, नाथ पंथ की परंपरानुसार आज सुबह करीब 4 बजे शिव अवतारी गुरु गोरखनाथ को लोक आस्था की खिचड़ी चढ़ाकर समूचे जनमानस की सुख-समृद्धि की मंगलकामना की. सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर खिचड़ी चढ़ाने की यह अनूठी परंपरा पूरी तरह लोक को समर्पित है.
इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी ने कहा, ''आज मकर
संक्रांति का पावन पर्व है. इस अवसर पर राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों से
श्रद्धालुओं द्वारा भगवान गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाई जाती है. मुझे भी भगवान गोरखनाथ
को खिचड़ी चढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ". उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा-लोक
आस्था के महापर्व 'मकर संक्रांति' (खिचड़ी) की सभी
प्रदेशवासियों व श्रद्धालुओं को हार्दिक बधाई। भगवान दिवाकर की कृपा से सभी के
जीवन में उमंग, उत्साह, आरोग्यता और
सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। भारतीय संस्कृति की जीवंतता को दर्शाता यह पर्व
सम्पूर्ण सृष्टि के लिए मंगलकारी हो.
गोरखनाथ मंदिर और वहां का खिचड़ी पर्व दुनिया में
मशहूर
गोरखनाथ मंदिर और वहां का खिचड़ी पर्व, दोनों ही पूरी दुनिया में मशहूर हैं. त्रेतायुग से
जारी बाबा गोरखनाथ को मकर संक्रांति की तिथि पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा की
सूत्रधार गोरक्षपीठ ही है.. सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर खिचड़ी चढ़ाने की यह
अनूठी परंपरा पूरी तरह लोक आस्था को समर्पित है. गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी के रूप
में चढ़ाए जाने वाला अनाज पूरे साल जरूरतमंदों में बांटा जाता है.. आज हमको बताएंगे कि कब से ये परंपरा चली आ
रही है, और बताएंगे की लोगों की आस्था इससे क्यों
जुड़ी है.
सामाजिक समरसता का केंद्र गोरखनाथ मंदिर
गोरखनाथ
मंदिर सामाजिक समरसता का ऐसा केंद्र है, जहां जाति, पंथ, महजब की बेड़ियां टूटती नजर आती
हैं.. इसके परिसर में क्या हिंदू, क्या मुसलमान, सबकी दुकानें हैं. बिना किसी भेदभाव के सबकी रोजी रोटी का
इंतजाम है.. यही नहीं, मंदिर
परिसर में महीन भर से ज्यादा टाइम तक लगने वाला खिचड़ी मेला भी जाति-धर्म के
बंटवारे से इतर हजारों लोगों की आजीविका का जरिया बनता है..
त्रेतायुगीन है बाबा गोरखनाथ को
खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा
आपको बता
दें कि गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा त्रेतायुगीन मानी जाती है..ऐसी
मान्यता है कि आदि योगी गुरु गोरखनाथ एक बार हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में
स्थित मां ज्वाला देवी के दरबार मे पहुंचे थे तो वहां मां ने उनके भोजन का प्रबंध
किया. कई प्रकार के व्यंजन देख बाबा ने कहा कि वह तो योगी हैं और भिक्षा में
प्राप्त चीजों को ही भोजन रूप में ग्रहण करते हैं. तब उन्होंने मां ज्वाला देवी से
पानी गर्म करने का अनुरोध किया और स्वयं भिक्षाटन पर निकल गए. भिक्षा मांगते हुए
वह गोरखपुर आ पहुंचे और यहीं धूनी रमाकर साधनालीन हो गए
उनका मुख
पर तेज देख लोगों ने उनके खप्पर में अन्न (चावल, दाल) दान किया. इस दौरान मकर
संक्रांति का पर्व आने पर यह परंपरा खिचड़ी पर्व के रूप में परिवर्तित हो गई. ऐसा
माना जाता है कि तब से बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने का क्रम हर मकर संक्रांति पर
जारी रहता है...ऐसी भी धार्मिक मान्याता है कि उधर ज्वाला देवी के दरबार में बाबा
की खिचड़ी पकाने के लिए आज भी पानी उबल रहा है.
हर साल मकर
संक्रांति के मौके पर भक्तों का रेला इस मंदिर में उमड़ता है. उत्तर प्रदेश, बिहार तथा देश के विभिन्न भागों
के साथ-साथ पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी श्रद्धालु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने के लिए
आते हैं. जब भी आपको मौका मिले तो इस गोरखनाथ मंदिर के इस उत्सव का हिस्सा जरूर
बनें. मंदिर की ओर से कोविड प्रोटोकॉल का पूरा ख्याल रखा जा रहा है. खिचड़ी महापर्व
को लेकर मंदिर व मेला परिसर सज धजकर पूरी तरह से तैयार दिखा. समूचा मंदिर क्षेत्र
सतरंगी रोशनी में नहाया हुआ है. यहां श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला गुरुवार शाम
से ही शुरू हो गया.
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