वाराणसी: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम कोर्ट ने बुधवार को 32 साल पुराने मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने आरोपी सिपाहियों के खिलाफ साक्ष्य नहीं मिलने पर उन्हें बड़ी राहत दे दी। भ्रष्टाचार के मामले में न्याय की गुहार में वर्षों इंतजार करने वाले सिपाही दोषमुक्त हुए, हालांकि इसमें से तीन लोगों की पहले ही मौत हो चुकी है। 32 साल पुराने मामले में क्षेत्रीय ट्रांसपोर्ट ऑफिस के प्रवर्तन विभाग के सिपाही रसाल सिंह यादव पर पच्चीस सौ रुपए घूस लेने का आरोप लगा था। इस केस की सुनवाई वाराणसी कोर्ट में चल रही थी। अदालत में आरोपी का पक्ष अधिवक्ता अंशुमान त्रिपाठी ने रखा।
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विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनयम (द्वितीय) रजत वर्मा की अदालत में बुधवार दोपहर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया गया। अभियोजन ने बताया कि तत्कालीन एसएसपी इलाहाबाद के आदेश पर वर्ष 1993 में इलाहाबाद आरटीओ ऑफिस के एआरटीओ ज्ञानस्वरूप गुप्ता और सिपाही रसाल सिंह यादव व अन्य पांच सिपाहियों के विरुद्ध थाना दारागंज प्रयागराज में प्राथमिकी दर्ज करायी थी। आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद भ्रष्टाचार निवारण टीम ने कोर्ट आरोपी पेश किए और बाद में चार्जशीट भी दाखिल हुई। हालांकि कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में भी कई खामियां थी। जिसमें साक्ष्य के आधार पर अदालत ने पाया कि आरोपी रसाल सिंह यादव द्वारा शिकायतकर्ता से घूस नहीं ली गई।
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कोर्ट को कोई भी साक्ष्य नहीं मिला और बरामदा माल भी न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया जा सका।। घूस की धनराशि की बरामदगी भी ARTO ज्ञानस्वरूप गुप्ता के बैग से हुई थी। विचारण के दौरान ARTO और दो अन्य अभियुक्तों की मृत्यु हो जाने के कारण उनके खिलाफ विचारण बंद कर दिया गया, वहीं न्यायालय ने रसाल सिंह यादव और एक अन्य अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया।
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