यूपी में विधानसभा चुनाव आने ही वाले हैं. उत्तर प्रदेश में 7 चरण में मतदान पूरा किया जाएगा. यह वोटिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के जरिए की जाएगी. ये ज्यादा आसान तरीका है जिससे मतगणना करना आसान हो जाता है और चीटिंग के चांस कम होते हैं. हालांकि, ईवीएम का नाम सुनते ही आपको याद आता होगा कि हर बार रिजल्ट के समय ईवीएम हैंकिंग की खबरें आने लगती हैं. आइए जानते हैं इस वोटिंग मशीन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जिससे शायद ज्यादा लोग वाकिफ न हों.
क्या होती है EVM?
ईवीएम या
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एक ऐसी डिवाइस है जो दो यूनिट से मिलकर बनी है- कंट्रोल
यूनिट और बैलेटिंग यूनिट. जब मतदाता वोट करने जाते हैं, तो चुनाव अधिकारी बैलेट मशीन के
जरिए वोटिंग मशीन ऑन करते हैं, जिससे आप मतदान कर सकें. इस यूनिट में प्रत्याशियों के नाम
लिखे होते हैं और उन्हें आप अपनी मर्जी से चुन सकते हैं. यह पूरा सेट ही ईवीएम कहा
जाता है.
क्या होता है EVM का कॉस्ट?
दरअसल, चुनाव आयोग की ऑफिशियल वेबसाइट के
अनुसार, कई तरह की
ईवीएम होती हैं-
पहली M2 EVM
(2006-10), जिसमें
नोटा के साथ ज्यादा से जायाद 64 कैंडिडेट्स के निर्वाचन कराए जा सकते हैं. यानी चार वोटिंग
मशीन तक जोड़ी जा सकती हैं. दोनों यूनिट मिलाकर इसकी लागत 8670/- रुपये होती है.
फिर आती है
M3 EVM, जिसमें ईवीएम से 24 बैलेटिंग यूनिट को जोड़कर नोटा सहित अधिकतम 384 कैंडिडेट्स के लिए निर्वाचन कराया
जा सकता है. दोनों यूनिट मिलाकर इसकी लागत 17,000 /- रुपये होती है.
बैलेट पेपर से कम होता है खर्च
आपको लग रहा होगा कि यह लागत बहुत ज्यादा है, लेकिन सही
मायनों में बेलेट पेपर के मुकाबले ईवीएम से खर्च कम होता है. इलेक्शन कमीशन के
मुताबिक, हर निर्वाचन के लिए लाखों की संख्या में
मतपत्रों की प्रिंटिंग, उनके ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज, आदि के अलावा, वोट काउंटिंग स्टाफ में होने वाले खर्च की भरपाई
ईवीएम से हो जाती है.
बिजली का नहीं होता इस्तेमाल
जानकारी के लिए बता दें कि ईवीएम बिजली पर नहीं, बल्कि बैटरी पर काम करती है. लाइट न होने पर वोटिंग
प्रोसेस रुकता नहीं है. साथ ही, इस बात का दावा
किया जाता है कि मतदाताओं को बिजली का झटका लगने की कोई संभावना नहीं है.
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