यूपी विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही समीकरणों को दुरुस्त करने की कवायद शुरू हो चुकी है। एक-एक सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। कोई बड़ी लहर नहीं होने के कारण जातीय समीकरणों पर ज्यादा जोर दिया जाने लगा है। यही कारण है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओपी राजभर को एक बार फिर अपने साथ लेने की कोशिशों में बीजेपी जुट गई है।
ओपी राजभर के अनुसार बीजेपी के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह
उनके घर पहुंचे और सीएम योगी से उनकी बात कराने की कोशिश की। हालांकि ओपी राजभर ने
बात करने से साफ इनकार कर दिया। भाजपा से अलग होने का मुख्य कारण योगी के साथ
राजभर का टकराव ही था। बीजेपी की नई कवायद के कई मायने निकाले जा रहे हैं। ओपी
राजभर का पूर्वांचल में अच्छा खासा दबदबा है। वह भले ही अकेले किसी सीट पर जीत
हासिल करने की स्थिति में नहीं हों, लेकिन उनको
मिलने वाला वोट किसी भी
दल को जीत दिलाने और हराने में भूमिका निभाता रहा है।
पिछले चुनाव में पूर्वांचल से ही बीजेपी को बड़ी जीत मिली
थी। इस बार सपा और ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा के साथ आने के कारण पूर्वी उत्तर
प्रदेश की दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर भाजपा का खेल बिगड़ रहा है। यह सीटें प्रधानमंत्री
मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और मुख्यमंत्री योगी के इलाके गोरखपुर के बीच
स्थित हैं। यही कारण है कि एक बार फिर ओपी राजभर को साथ लाने की कोशिश हुई है। बीजेपी
उपाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र ने भी इस मुलाकात की पुष्टि की है।
हालांकि ओपी राजभर ने साफ कर दिया है कि उनका अब
गठबंधन सपा के साथ है और उन्हीं के साथ रहेगा। समाजवादी पार्टी के साथ जाने से
उनका सम्मान बढ़ा है। अखिलेश यादव पूरा सम्मान दे रहे हैं। सीटों के बंटवारे पर
फैसला भी 12 जनवरी तक हो जाएगा। राजभर के अनुसार बीजेपी उपाध्यक्ष
दयाशंकर सिंह ने कहा कि पीएम मोदी, मुख्यमंत्री योगी
सभी चाहते हैं कि आप फिर से बीजेपी के साथ आएं। उन्होंने मौके से ही सीएम और भाजपा
के अन्य वरिष्ठ नेताओं से बातचीत कराने की पेशकश की, जिसे
उन्होंने खारिज कर दिया।
दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर दबदबा
सपा और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के मिलकर लड़ने का
बड़ा असर पूर्वांचल की सीटों पर देखने को मिल सकता है। सुभासपा का यहां की करीब दो
दर्जन से ज्यादा सीटों पर दबदबा है। राजभर की पार्टी सुभासपा लगभग दो दशक से
चुनावी मैदान में उतर रही है। हमेशा ही राजभर ने छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव
लड़ा था। इसके कारण कभी किसी सीट पर जीत नहीं मिली। पिछले चुनाव में ओमप्रकाश ने
भाजपा के साथ गठबंधन किया और पूर्वांचल की आठ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे।
इनमें चार सीटों पर सुभासपा ने जीत हासिल की थी। अन्य चार सीटों पर भी कड़ी चुनौती
दी थी।
ओपी राजभर का दावा है कि 100 सीटों पर राजभर समाज के वोट हार जीत तय करने की क्षमता रखते हैं। इनमें
वाराणसी की पांच, आजमगढ़ की 10, जौनपुर
की 9, बलिया की 7, देवरिया की 7
और मऊ की चार सीटों पर राजभर वोटरों की अच्छी तादाद है। राजभर की
मानें तो यूपी की 66 सीटों पर 40 से 80
हजार और 56 सीटों पर 25 से
39 हजार तक राजभर वोट हैं। ओमप्रकाश की गिनती जीतने से
ज़्यादा खेल बिगाड़ने वालों में होती रही है। 2017 में भाजपा
के साथ गठबंधन ने इन्हें जीत का स्वाद दिया और योगी कैबिनेट में मंत्री भी बने।
बाद में योगी से मतभेदों के कारण मंत्री पद से बर्खास्त कर दिये गए।
बेटे के पास आया नड्डा का भी फोन
दूसरी तरफ यह भी बताया जा रहा है कि भाजपा राष्ट्रीय
अध्यक्ष जेपी नड्डा का फोन ओपी राजभर के बेटे अरविंद राजभर के पास आया था। भाजपा
के वरिष्ठ नेताओं के करीबी व्यक्ति, वाराणसी के एक
व्यापारी ने भी ओमप्रकाश से फोन पर बात कर उनकी बात पीएम नरेंद्र मोदी व अमित शाह
से कराने की बात भी सामने आई है।
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